जानिए केदारनाथ धाम से जुड़ी कुछ रोचक बातें
दोस्तों आइये आज चर्चा करते है केदारनाथ धाम की कुछ महत्वपूर्ण बातों का | दोस्तों केदारनाथ धाम को द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक मन जाता है | आज हम आपको केदारनाथ की वो कथा सुनाएंगे जिसमे आपको पता चलेगा की केदारनाथ को क्यों पंच केदार कहा जाता है |
पंच केदार पांच शिव मंदिरो का एक समूह है, यह पांच मंदिर देवभूमि उत्तराखंड में होने के कारण इन्हे पंचकेदार कहा जाता है | पंचकेदार में सबसे प्रथम केदार बाबा केदारनाथ जी का धाम आता है, द्वितीय केदार "मध्यमहेश्वर", तृतीय केदार "तुंगनाथ", चतुर्थ केदार "रुद्रनाथ" और पांचवा केदार "कल्पेश्वर" हैं | दोस्तों ऐसा माना जाता है की अगर आप भगवान् केदारनाथ के दर्शन के लिए जा रहे हो तो आपको पंचकेदार के साथ साथ नेपाल में पशुपतिनाथ धाम का भी दर्शन करना चाहिए, इससे आपकी यात्रा पूर्ण मानी जाती है |
पंचकेदार के कथा के अनुसार महाभारत के युद्ध के बाद पांडवो ने हस्तिनापुर का शासन संभाला और युद्ध में अपने कुल का नाश, गुरु हत्या जैसे पापों का पश्चाताप वो करना चाहते थे | इसीलिए सभी पांडव भगवान् श्री कृष्ण के पास गए | उन्होंने उन्हें समझाया की यह युद्ध धर्म और अधर्म के बीच था इसीलिए आप किसी भी तरह के पाप के भागिदार नहीं हैं | आपकी यह भावना उत्तम है लेकिन कुल हत्या, गुरु हत्या जैसे दोमूहि गौ हत्या के सामान महापाप है इसीलिए पापों के पश्चाताप के लिए महादेव के शरण में जाना चाहिए | तब पांडवो ने अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को हस्तिनापुर का राजा बना दिया और अपनी यात्रा आरम्भ करी | सबसे पहले पांडव कशी गए पर महादेव पांडवो को दोषमुक्त इतनी आसानी से नहीं करना चाहते थे | इसीलिए पांडवो को अपनी ओर आता देख महादेव अंतर्ध्यान होकर लघु कैलाश चले गए | तब देवऋषि नारद ने यह समाचार पांडवो को दिया तो पांडव भी केदार घाटी की ओर चल दिए | केदार घाटी की ओर जाते समय एक स्थान पर देखा की गौ वंश के झुण्ड में एक बैल भी जा रहा था जो अन्य से बिलकुल अलग था, उससे अलौकिक प्रकाश पुण्य निकल रहे थे, तब पांडवो को समझते देर नहीं लगी की ये महादेव ही हैं | जैसे ही पांडव उनके ओर बढे की बैल रुपी शिवजी ने धरती में सींग मारकर एक गढ्ढा कर दिया और फिर उसी स्थान में अंतर्ध्यान हो गए, यह स्थान गुप्तकाशी के नाम से प्रसिद्ध हुआ |
पांडवो ने अपनी यात्रा जारी रखी, कुछ दिन बाद वो एक घास के मैदान में पहुंचे वहां वही बैल गौ वंश के साथ फिर से दिखाई दिया तब भीम ने अपने शरीर को विशाल किया और दो पहारो के ऊपर अपने पैरों को जमा दिया | इसके बाद चारो पांडवो और द्रोपदी ने गौ वंश को भीम के पैरो के नीचे से भगाना शुरू किया पर बैल रूपी शिवजी उनके पैर के निचे से नहीं जाना चाहते थे | उन्होंने फिर से अपना सींग धरती पर मारना शुरू किया तब भीम ने उनको पकड़ने की कोशिश की जिससे उनका पिछला हिस्सा ही पकड़ में आया और वह भाग पत्थड़ का बन गया | यह पत्थड़ का शिला आज भी केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह में एक शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है |
महादेव को पुनः ना पाने के कारण पांडव निराश थे पर भगवान् शिव पांडवो की भक्ति से प्रशन्न होकर दर्शन दिए और कहा आप सब की भक्ति से मैं अत्यंत प्रशन्न हु अतः मैं यहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में बिराजमान होता हु |
कहते है की शिव जी बैल के अंग जहा जहा प्रकट हुए वहां मंदिरो की स्थापना की गयी | बैल रूपी शिव जी का ऊपरी भाग काठमांडू नेपाल में प्रकट हुआ जहा पशुपतिनाथ जी का भब्या मंदिर है |
पंचकेदार में केदारनाथ धाम प्रथम है यहाँ शिव जी रुपी बैल की पीठ प्रकट हुई थी | मध्यमहेश्वर दूसरे केदार के रूप में माना जाता है यहाँ शिवजी रुपी बैल का मध्य भाग प्रकट हुआ था | तुंगनाथ तीसरे केदार के रूप में माना जाता है, यहाँ शिवजी रुपी बैल भुजाये प्रकट हुई थी | रुद्रनाथ चतुर्थ केदार के रूप में माना जाता है, यहाँ शिव जी रुपी बैल का मुख प्रकट हुआ था | कल्पेश्वर पांचवा केदार के रूप में माना जाता है, यहाँ शिव जी रुपी बैल की जटाये प्रकट हुई थी |
दोस्तों यह कहानी आपको कैसा लगा, हमे कमेंट बॉक्स में लिखकर जरुर बताये और अगर आपके पास कोई सुझाव हो तो वो भी लिखकर जरूर बताये, धन्यवाद